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जेहादन तथा अन्य कहानियाँ

प्रदीप श्रीवास्तव

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2024
पृष्ठ :272
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 17180
आईएसबीएन :9781613017876

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5 पाठक हैं

प्रदीप जी मानव मन को झकझोरती कहानियाँ

भूमिका

सार्थक, जागरूक और सावधान करता लेखन

 

आधुनिक भारतीय ज्ञान मीमांसा के शिखर पुरुष रामविलास शर्मा कई बार कहते हैं कि लेखक का धर्म और कर्तव्य पाठकों और समाज के प्रति है। यदि अपने कर्तव्य का पालन नहीं कर रहा है तो वह कुछ भी हो सकता है पर सच्चा लेखक नहीं। जब हम भारतेंदु हरिश्चंद्र की उक्ति "साहित्य समाज का दर्पण है" को आज के संदर्भों में देखते हैं तो भी निराशा हाथ लगती है। क्योंकि अधिकांश लेखक लीक पर या विदेशी लेखकों की भोंडी नकल पर ही चल रहे हैं। इनमें कई आज के चर्चित युवा चेहरे भी हैं। और फिर रोना रोते हैं कि पाठक नही हैं, किताबें नहीं बिकतीं। जरूरी यह है कि क्या आपने अपनी जिम्मेदारी पाठक के प्रति निभाई! पाठक को जादू, यथार्थवाद, या यौन चित्रण से अब आप बेवकूफ नहीं बना सकते। आप पाठकों के मन की थाह,उसके मन में उठते प्रश्नों को किस तरह समझ कर उसे अपने लेखन में रोचक ढंग से लाते हैं, इससे आपका दर्जा, आपकी पुस्तकों की लोकप्रियता बढ़ती है। ऐसे ही चंद नाम हैं, जिन्हें पाठक खोज खोजकर पढ़ता है, सूर्यबाला, ममता कालिया, पुष्पिता अवस्थी, ज्ञान चतुर्वेदी, प्रेम जनमेजय, दामोदर खड़से, गिरीश पंकज, शरण कुमार निंबाले, रतनकुमार सांभरिया, कुसुम खेमानी, अनामिका,और अलका सरावगी आदि। इन्हीं में एक युवा नाम उभरकर राष्ट्रीय परिदृश्य पर पिछले दो दशकों के निरंतर लेखन और अध्ययन से आया है प्रदीप श्रीवास्तव का। जिनके उपन्यासों और कथा साहित्य में रोचकता, पठनीयता के साथ-साथ समाज और राष्ट्र के सामने आई समस्याएं हैं। फास्ट फूड, अपसंस्कृति के खतरे हों, किसान आंदोलन, फिल्मी दुनिया का यथार्थ या फिर कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्याचार, अथवा एक धर्म विशेष द्वारा पूरे विश्व में सुनियोजित ढंग से की जा रही साजिश हो, सभी पर प्रदीप अपनी कलम से ऐसी सर्जरी करते हैं कि व्यक्ति, मानवता, विश्वास कायम रहता है और समस्या या बाधा दूर हो जाती है। भारत के एक बड़े प्रकाशक की साइट पर उनकी किताबों को छह लाख से भी ज्यादा बार डाऊनलोड किया जा चुका है। डेढ़ मिलियन से अधिक व्यूज हैं। 

'जेहादन और अन्य कहानियां' आपका नौवां कथा संग्रह है। जिसमें भाषाई बाजीगरी की जगह संवेदनाएं हैं। जिसमें जादुई कुछ भी नहीं है बल्कि खुरदरा यथार्थ है। जहां अन्य फरमाइशी लेखक बचकर निकल जाते हैं वहीं प्रदीप उनसे मुखातिब ही नहीं  होते हैं बल्कि दो-दो हाथ करते हैं। उन्हीं में से बिना उपदेश और गिल्ट के वह सही और गलत का अंतर बेहद शानदार ढंग से बताते हैं कि पाठक वाह वाह कर उठता है। संग्रह की सबसे उल्लेखनीय कहानियों में, 'स्याह उजाले के धवल प्रेत', 'फ़ाइनल डिसीज़न', 'जेहादन', 'रुबिका के दायरे', 'साँसत में काँटे', 'सन्नाटे में शनाख़्त', 'सत्या के लिए' आदि हैं। यह कहानियाँ प्रेम चंद की करीब सौ वर्ष पूर्व लिखी गई कहानी 'जेहाद' का स्मरण करा देती हैं, विशेष रूप से 'जेहादन'।

'स्याह उजाले के धवल प्रेत' कहानी देश में राजनीतिक दलों द्वारा अपने स्वार्थों को साधने के लिए किस तरह देश, देशवासियों के साथ छल कपट किया जाता है,उनकी पीठ में छूरा घोंपा जाता है  इसका कच्चा चिट्ठा सामने रखती है। कहानी में एक पात्र का यह संवाद ही काफी कुछ कहता है, "... कौन सा देश, कैसा देश, इस सरकार को हम घुटनों पर ला देंगे। हर तरफ़ इतनी आग लगाएँगे कि उनको बुझाते-बुझाते ये थक जाएँगे, लेकिन बुझा नहीं पाएँगे।" यह आज का सच ही रेखांकित कर रहा है। इसी क्रम में 'रुबिका के दायरे' कहानी का यह अंश भी है, "जब-तक शाहीन बाग़ की आग जलाए रखनी थी, तब-तक तो उठते-बैठते नाक में दम किए रहते थे। उसके बाद न तो हमारे मुक़द्दमों की कोई खोज-ख़बर, न ही हमारी थीसिस की। हमें चवन्नी-अठन्नी देकर सारे पैसे अकेले डकारते रहते हैं। मुझे नफ़रत हो गई है उनसे।"

'फ़ाइनल डिसीज़न' कहानी एक ऐसे विषय पर है जिस पर कलम उठाने के बजाय अधिकाँश लेखक बचकर निकल जाना श्रेष्यकर समझते हैं,लेकिन इसके उलट प्रदीप ने अपने स्वभाव के अनुरूप बड़ी बेबाकी से पूरी गहराई में उतर कर लिखा है। ब्रिटेन, अमेरिका, कैनेडा, ऑस्ट्रेलिया आदि दूर देशों में रह रहे भारतियों विशेष रूप से हिन्दुओं, उनके पूजा स्थानों पर वहां समुदाय विशेष द्वारा जो सुनियोजित ढंग से हमले किये जाते हैं, उन्हें प्रताड़ित किया जाता है, कहानी उनकी समस्याओं को बहुत सशक्त ढंग से उठाती है।

अभी हाल ही में इसी मुद्दे पर एक अमेरिकी सांसद ने संसद में एक प्रस्ताव भी पेश किया था कि किस तरह मंदिरों पर हमले किये जाते हैं। ब्रिटेन की संसद में भी कई बार यह मामला उठ चुका है। यह स्थिति की गंभीरता की ही ओर संकेत कर रहा है। जिसे कहानी का यह अंश और ज्यादा स्पष्ट कर देता है, "आज वह फिर नस्लवादी कॉमेंट की बर्छियों से घायल होकर घर लौटी है। वह रास्ते भर कार ड्राइव करती हुई सोचती रही कि आख़िर ऐसे कॅरियर पैसे का क्या फ़ायदा जो सम्मान, सुख-चैन छीन ले। क्या मैं गायनेकोलॉजिस्ट इसीलिए बनी, इसीलिए अपना देश भारत छोड़कर यहाँ ब्रिटेन आयी कि यहाँ नस्लवादियों, जेहादियों की नस्ली भेद-भाव पूर्ण अपमानजनक बातें, व्यवहार सुनूँ, बर्दाश्त करूँ, इनके हमलों का शिकार बनूँ।" वास्तव कहानी वहां हिन्दू ही नहीं सिख़,ईसाई,पारसी,यहूदी इन सभी समुदायों पर समुदाय विशेष के सुनियोजित हमलों का ब्यौरा रखती है, जिससे ब्रिटेन के मूल निवासी, सरकार सभी परेशान हैं, समाधान के रास्ते ढूँढ रहे हैं। धर्मान्धता के चलते यह समस्या भारत सहित पूरी दुनियाँ में गंभीर रूप लेती जा रही है। संग्रह की सभी कहानियाँ समस्या के विभिन्न रूपों को बहुत ही प्रभावशाली,बेबाकी से सामने लाती हैं।                         

कहानियों का कथानक मजबूत है, शिल्प थोड़ा कमजोर है। परंतु उसे सहज प्रवाहमान भाषा सहारा देती है तो रोचकता बनी रहती है। इस नए संग्रह से पिछले संग्रह की तुलना में लेखक का अपेक्षाकृत अधिक विकास उनके अंदर की बेचैनी को दर्शाता है। यही वह रचनात्मक छटपटाहट है जो हमें मजबूर ही नहीं बल्कि उन लोगों के साथ खड़ा कर देती है जिनकी आज तक सुनवाई नहीं हुई। जिनकी चीखें, अन्याय, शोषण और घुटन एक सजग इंसान, लेखक को सोने नहीं देते। प्रदीप के लेखन से एक दशक से अधिक समय से परिचित हूं, यह वैसे ही सहज, सजग और घुटन को आवाज देने वाले इंसान हैं। और यही आवाज जो लेखक उठाता है ईश्वर तक पहुंचती है और वास्तव में न्याय होता है। यह दिलचस्प है कि वह लोग जो वास्तविक जिंदगी में इन कहानियों के पात्र आंशिक या पूर्णतः हैं, वह सुदूर हैं और उन्हें  नहीं पता कि उन्हें दूर से, समाचारपत्रों के माध्यम से उनकी पीड़ा, कहानी जान रहा है एक मनुष्य, एक लेखक। वह उनके कष्टों को अपनी कलम, लेखन से स्वर दे रहा, दुनिया के सामने ला रहा, मौन प्रार्थना कर रहा अन्याय के खत्म होने की। और वह प्रार्थनाएं सुनी भी जा रही हैं और कष्ट, दुख, शोषण चाहे थोड़ा ही सही पर कम हुआ है। जख्म भरने की शुरुआत हुई है तो जल्द ही भर भी जाएगा। सशक्त कथाकार के शब्दों, भावों और सबसे बढ़कर प्रतिबद्धता दर्शाती इन कहानियों का वैश्विक पाठक मंच स्वागत करेगा, ऐसा मुझे विश्वास है।          

शुभम ।

डॉ. संदीप अवस्थी 
(चर्चित कथाकार और फ़िल्म पटकथा लेखक)
सम्पर्क - 7737407061  

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